बिगड़ल हालात
बिगड़ल हालात

बिगड़ल हालात
एक दिन के बात रहें, बिगड़ल बढ़ी हालात रहें।
भोर भिंसारे दुवार पर आके,दू गो लईका चिलात रहें।
काका हो जल्दी आव, झटसे ड़ोल कठरा लीआ व।
बग़ल के घर में आग लागल बा, चलके जल्दी बुता व।।
निकल के देखनीं जब हम बाहरा,आन्ही लागल बहें।
घर गोवास आ बेरीह जरके,सब बारी बारी से ढहे।।
सोचें लगनी बड़का बिपत आइल बाटे काहे।
का करीं कुछ समझ न आवे,त लगनी जोड़ जोड़ से चिल्लाए।
हमर आवाज सुनके,टोला भर के लोग जागल।
एक जुट होके सब आगी बुलावें में लागल।।
दमकल के बोला वे खातिर,लगा देहनी हम फ़ोन।
ऐतने देर में जरे लागल मंगरू भाई के घरके कोन।।
तब बुझाइल हमरा कि, गांव के एगो घर ना बांची।
त सामान सारा निकालें लगनी घरके तुर्के टाटी।।
आगी के बुताए खातिर,पुरा गांव के लोग जुटल।
बढ़ संघर्ष कइला के बाद,आगी जाके बुतल।।
तब जाके बुझनी हम कि, एकता में केतना दम बा।
ओकरा आगे हर मुसीबत,भइल सारा कम बा।
एहिसे
एक दुजे के साथ दें के,दिव्य अलख जगा व।
मनुष्य जीवन के सार्थक कर, सारा मनके मैल मिटा व।।
काहे कि
मनके भीतर आग लागी त, दमकल भी ना बुतावें पाई।
चाहे केहू केतनों,आपन छाती पिठ ठेठाई।।
✍️ अमोद गुप्ता
वीरगंज 17 नेपाल






