भारत के आजादी से विकास ले : नवा संकल्प
भारत के आजादी से विकास ले : नवा संकल्प

रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’
प्रोफेसर, नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ) , नालन्दा
भारत के आजादी के पचहत्तर साल से ऊपर बीत गइल बा। आजादी के दिन—पंद्रह अगस्त—हमनी खातिर खाली एगो तारीख ना, बलुक ई हमरा सभकर आत्मा में बसल गर्व, बलिदान आ सपना के प्रतीक ह।
ई दिन हमनीके ई याद दिलावेला कि कइसे हमार पुरखा सभ, गरीब किसान से लेके पढ़ल-लिखल नौजवान तक, सबकुछ कुर्बान क दिहलें, खाली एह खातिर कि देश आजाद हो सके। बाकिर आजादी के असली मतलब खाली परचम फहरावल ना, बलुक ई बा कि देश के हर कोना, हर आदमी, हर औरत आ हर बच्चा, सम्मान, सुख आ अवसर पावे। एह सपना के पूरा करे खातिर अब हमरा सभके मिल-जुल के देश के विकास के दिशा में सोचल आ काम करे के पड़ी।
भारत के विकास के बुनियाद ई बा कि हर आदमी के जिनगी में सम्मान आ सुरक्षा होखे। पहिला काम शिक्षा के क्षेत्र में करे के चाहीं। गाँव होखे चाहे शहर, हर बच्चा के बढ़िया आ बराबरी के शिक्षा मिले। स्कूल में खाली किताब-पढ़ाई ना, बलुक रोजगार से जुड़ल हुनर भी सिखावल जाव। शिक्षा में भोजपुरी, मैथिली, अवधी जइसन मातृभाषा के भी सम्मान होखे, ताकि लोक संस्कृति आ भाषा के पहचान बचल रहे आ साथे- साथ विकास के मुख्यधारा में शामिल हो सके।
दूसर काम स्वास्थ्य के क्षेत्र में बा। अस्पताल आ डॉक्टर के सुविधा हर गाँव-गाँव तक पहुँचे के चाहीं। गरीब के इलाज मुफ्त होखे, अउर दवाई के कमी कबहूँ ना होखे। आजकल गाँव में मामूली बीमारी से लेके गंभीर बेमारी तक लोग परेशान हो जाले, काहेकि सुविधा दूर बा आ खर्चा बहुत बा। जदि हमनी ई स्थिति बदल दीं, त विकास के रास्ता अपने आप चौड़ा हो जाई।
खेती भारत के रीढ़ ह। किसान जब तक खुशहाल ना होई, तब तक देश के विकास आधा-अधूरा रही। खेती के आधुनिक साधन, बढ़िया बीज, सिंचाई के बढ़िया व्यवस्था, अउर फसल के उचित दाम, ई सब किसान के जीवन बदल सकेला। सरकार आ समाज, दुनु मिलके ई सुनिश्चत करे कि किसान आपन मेहनत के सही दाम पावे आ मुनाफाखोर बिचौलिया लोग के दबाव से बचे।
देश के विकास में उद्योग आ रोजगार भी जरूरी बा। खाली शहर में फैक्ट्री लगाके ना, गाँव में भी लघु उद्योग आ कुटीर उद्योग के बढ़ावा देवे के चाहीं। ई से गाँव के नौजवान लोग के अपना घर के लगे काम मिली, पलायन घटेगा आ गाँव-गाँव में समृद्धि आई। साथही, नई तकनीक, डिजिटल प्लेटफार्म, आ इंटरनेट के सही उपयोग से रोजगार के संभावना बढ़ सकेला।
पर्यावरण के रक्षा भी विकास के जरूरी हिस्सा बा। नदियन के साफ-सफाई, जंगल के बचाव, आ हवा-पानी के प्रदूषण कम करे के काम करे के पड़ी। जदि हमनी विकास खातिर प्रकृति के नुकसान करब, त अगिला पीढ़ी खातिर खाली संकट छोड़ब। एही से, हर गाँव-शहर में पेड़-रोपण, कचरा प्रबंधन, अउर जल-संरक्षण के मजबूत योजना बने।
महिला सशक्तिकरण बिना विकास अधूरा बा। औरतन के शिक्षा, रोजगार, आ राजनीति में बराबरी के अवसर मिले। घर आ समाज दुनु में औरतन के सम्मान होखे। जदि आधा आबादी के सही से जोड़ा जाई, त देश के ताकत दुगुना हो जाई।
देश के विकास खातिर भ्रष्टाचार खत्म करे के पड़ी। सरकारी तंत्र पारदर्शी होखे, कानून सब पर बराबर लागू होखे, चाहे ओह में बड़का नेता होखे कि साधारण आदमी। जदि न्याय व्यवस्था तेज, सस्ती आ निष्पक्ष होखी, त लोग के भरोसा बढ़ी आ समाज में सुधार होई।
नौजवान पीढ़ी के ऊर्जा सही दिशा में लगावल बहुत जरूरी बा। खेल, विज्ञान, कला, साहित्य, तकनीक—सब क्षेत्र में प्रतिभा के पहचान के मौका मिले। युवा लोग खाली सरकारी नौकरी पर निर्भर ना रही, बल्कि उद्यमिता, नवाचार आ शोध के दिशा में भी आगे बढ़े।
आजादी के असली सम्मान तब होई जब हमनी विकास के राह में जात-पात, धर्म, भाषा के भेदभाव से ऊपर उठके काम करब। एक-दूसरा के सम्मान करीं, आ देश के एकता के ताकत बनाईं। विदेश नीति में आत्मनिर्भरता अउर सम्मानजनक संबंध बनावत, हमनी अपन उत्पाद, अपन हुनर, आ अपन संसाधन पर भरोसा बढ़ाईं।
एह तरह, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण, पारदर्शी शासन, युवा शक्ति, आ एकता—ई सब विकास के स्तंभ ह। जदि हमनी सब मिलके, ई दिशा में ईमानदारी से काम करीं, त भारत ना खाली आर्थिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक आ सामाजिक रूप से भी विश्व में मिसाल बन सकेला। पंद्रह अगस्त के परचम फहरावे के साथे, ई संकल्प हमनी हर साल, हर दिन लेईं कि देश के विकास खातिर, आपन हिस्सा जरूर निभाईब, चाहे ओह में समय, मेहनत, दिमाग, या संसाधन लागे। काहेकि आजादी के असली मायना एह में बा कि भारत के हर नागरिक खुशहाल, सुरक्षित, आ सम्मानित जिनगी जी सके।
आजादी के महत्व खाली इतिहास के पन्ना में दर्ज ना बा, बल्कि ई हमनी के रोज के जिनगी में भी उतरल चाहीं। हमनी के आपन जिम्मेदारी समझे के पड़ी कि विकास खाली सरकार के काम ना ह, बल्कि हर नागरिक के योगदान से ई सपना पूरा हो सकेला। घर से शुरू कइल छोट-छोट पहल, जइसे साफ-सफाई, पानी के बचत, बिजली के सही इस्तेमाल, आ पड़ोसी के मदद, ई सब मिलके बड़का बदलाव ला सकेला।
गाँव आ शहर के बीच के दूरी कम करे के पड़ी। सड़कों, रेल, इंटरनेट आ संचार के सुविधा हर जगह पहुँचे के चाहीं, ताकि गाँव के किसान आपन माल सीधे मंडी या बाजार में बेच सके, आ शहर के लोग गाँव के असली स्वाद चखे। सांस्कृतिक मेल-मिलाप से भी देश में अपनत्व के भावना बढ़ी।
भाषा आ साहित्य के भी विकास के हिस्सा मानल जाव। भोजपुरी, अवधी, मैथिली, राजस्थानी जइसन क्षेत्रीय भाषा सभ में लिखल-पढ़ल सामग्री, गीत-संगीत आ नाटक के बढ़ावा मिलो, ताकि नई पीढ़ी अपन जड़ से जुड़ल रहे। ई से मानसिक आ सांस्कृतिक विकास होई, जे देश के मजबूती में योगदान दी।
हमनी के ई भी ध्यान रखे के बा कि विकास में कमजोर तबका के हिस्सा बराबर होखे। दलित, आदिवासी, गरीब मजदूर आ पिछड़ा वर्ग के मौका आ सम्मान बिना, विकास अधूरा रही। समान अवसर, सही प्रतिनिधित्व, अउर सामाजिक न्याय—ई सब के ध्यान में राखल जरूरी बा।
आखिरकार, विकास एक दिन में ना होखे। ई निरंतर प्रक्रिया बा, जे हमनी के धैर्य, मेहनत आ एकजुटता से ही संभव हो सकेला। पंद्रह अगस्त के दिन हमनी झंडा फहरावत समय ई कसम खाईं कि देश खातिर काम करब, ना खाली बोल में, बल्कि हर रोज के काम में। जब हर आदमी ई सोच ली कि देश के भलाई में ओकरा भी जिम्मेदारी बा, तब भारत के विकास के रफ्तार केहू रोक ना पाई। ईहे आजादी के असली उत्सव आ सच्चा सम्मान होई।






