राखी, ऋषितर्पणी आ जनैपूर्णिमा मनावल गईल

वीरगंज १९ सावन
श्रावण शुक्लपूर्णिमा के दिन मे मनावेवाला ऋषितर्पणी, रक्षाबन्धन एवं जनैपूर्णिमा, राखी पर्व आजु स्नान करके नयाँ यज्ञोपवीत (जनै) धारण आ रक्षाबन्धन (डोरो) बान्हके मनावल गईल बा ।
सत्ययुग मे दानवद्वारा चहेंटल देवगण के गुरु बृहस्पति से रक्षा विधान तइयार करके ‘जउना के चलते बहुते बलशाली दानवराज बलि बन्हईलें, ओहिसे हम तोहरा के बान्हेम, एकरा से तु सुरक्षित वन, विचलित ना होख’ कहके डोरी बान्हके जोगवले रहलन कहके पौराणिक मान्यता के आधार मे ई पर्व मनावल शुरु कईल बा ।
ईहे चलते रक्षाबन्धन करेके समय मे गुरु पुरोहित ‘येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षेमा चलमाचल’ कहके रक्षासूत्र, रक्षाबन्धन भा डोरी बान्हेके वैदिक परम्परा रहल नेपाल पञ्चाङ्ग निर्णायक समिति के अध्यक्ष प्रा डा रामचन्द्र गौतम बतवले बानी ।
मानव रक्षा के खातिर जप, तप आ पूजा करके मन्त्रिएको रक्षाबन्धन अर्थात् डोरी वैदिक मन्त्रोच्चारण करत ब्राह्मण पुरोहित से यजमान के कलाई मे बन्हले बाडन । स्नान के बाद जौ, तिल आ कुशद्वारा ऋषिसब के तर्पण करके वैदिक रुद्राभिषेक पद्धति से नयाँ जनै (यज्ञोपवीत) बदलल बा ।
आजु के दिन सप्तऋषिलोग काश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ आ विश्वमित्र के तर्पण देहल जाला । ऋषि के तर्पण करेके भईला से आजु के दिन के ऋषितर्पणी भी कहल जाला ।
आजुज मन्त्रद्धारा जनै बदलेवाला भईला से हि श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के जनैपूर्णिमा भी कहल जाला ।
आजु के दिन करेवाला स्नान के श्रावणी स्नान भी कहल जाजला ।
वैदिक गुरु परम्परा मुताविक यज्ञोपवीत अर्थात् जनै के ब्रह्मसूत्र भा ज्ञान के धागो के रूप मे मानल जाला ।
जनै के दु शिखा मेसे एगो शिखा मे रहेवाला तीन डोरा के ब्रह्मा, विष्णु आ महेश्वर के प्रतीक के रूप मे पुजा कईल जाला । दोसर डोरा के तीन गो शिखा के कर्म, उपासना आ ज्ञान के त्रियोग के रूप मे लेहल जाला ।
आजु के दिन एघार किसिम के गेडागुडी मिलाके भिजाके जामल क्वाँटी बनाके खाईल जाला ।
अईसे क्वाँटी बनाके खईला से देह मे बेमारी ना होखेके, पेट सफा होखेके आ वर्षायाम भर खेतीपाती के काम कईला पर देश मे लागल जाडा निकाल के भितर से हि ताप के सञ्चार करी कहके धार्मिक मान्यता बा ।
क्वाँटी बेमारी प्रतिरोधात्मक क्षमता विकास करेके भईला से कोरोना भाइरस के सङ्क्रमण से बँचे खातिर भी उपयोगी होखेके आयुर्वेद के विज्ञ के कहनाम बा ।
नेपाल के तराई क्षेत्र मे आजु के दिन दिन दिदीबहिन से दाजुभाई के राखी बान्हके मनावल गईल बा । एकरा से दिदीबहिन आ दाजुभाई के बीच मे प्रेमसम्बन्ध बढी कहके सामाजिक मान्यता बा ।
गुन्हु पुन्हिमा भ्यागुता पूजा
नेवारी समुदाय श्रावण शुक्लपूर्णिमा के गुन्हु पुन्ही कहके मनवले बाडन ।
खास करके क्वाँटी खाएके परम्परा नेवारी समुदाय के इहे पर्व से आईल बा कहके एक किसिम के संस्कृतिविद् के बा ।
आजु के दिन नेवारी समुदाय के आदमी घण्टाकर्ण राक्षस के समाप्त करे खातिर योगदान करके मानवीयता के बँचावे खातिर सहजोग कईल विश्वास मे बेंङ्ग के पूजा कईले बाडन ।
बौद्ध दर्शन के मानेवाला बौद्ध धर्मावलम्बी आजु के दिन के भगवान् गौतम बुद्ध कामशक्ति उपर विजय प्राप्त कईल सम्झना के दिन के रूप मे मनावल जाला ।
बौद्ध धर्मग्रन्थ ललितविस्तर मे ई सम्बन्धी विस्तृतरूप मे व्याख्या कईल बा ।






