विजयादशमी: एगो समूहवाची अभिव्यक्ति 

परिचय दास

विजयादशमी शक्ति क उत्सव ह , मंगल क हेतु.  कइसन शक्ति ? जवन अन्याय क प्रतिरोध करे, जवन निर्बल के संबल दे.  जवन करुना के समन्वित क के पुरुषार्थ के आधार बनावे. ‘ जे लरै दीन के हेत सूरा सोई ‘ . हर केहू के  जीवन में वनवास आवेला. ओम्में अपने के बचा के साहसपूर्वक जहवाँ भविष्य -गमन होखे, ऊहे विजयादशमी ह. विजयादशमी से पूर्व नौ  दिवसीय उपवास क शक्ति   .  उपवास यानी निकट रहल. ई निकटता वास्तव में अपनहीं से होखे के चाहीं. जे अपने से निकट ना , ऊ केहू के निकट ना हो सकेला . केहू के निकट होके , केहू अउर के निकट होखल श्रेयस्कर ह.  समकालीन दुनिया में  अदिमी अपने के  खोवत जा रहल हवे. सब कुछ पवाला के बावजूद स्वयं क रिक्तता. ईहे विपर्यय ह. पद-प्रतिष्ठा-रुतबा-संपर्क  आदि तब ले द्वितीयक हवें जब ले स्वयं [ निजता ] क आभा ना होखे. निजता के शक्ति से हीन व्यक्ति शक्तिशाली ना हो सकेला , विजयादशमी ईहे इंगित करले. राम आत्मिक उदात्तता के चरम छन के विरल संगीत हवें . सीता आ राम खाली हमनीं के परम्परा क गति ना , यतियो हवें, छंदो हवें जवन   हजारन बरिस से हमनीं के अभिव्यक्ति बनल हवें .

हर केहू में  अच्छाई -बुराई क संधि ह. अनुपात अलग-अलग हो सकेला. कवनों -कवनों क्षेत्र धूसरो हो सकेला, मने ग्रे एरिया.  भारतीय सामान्य व्यक्ति  क  प्रश्नाकुलता के स्वर विजयादशमी में  हवे जवन   हमनीं के  धमनी  आ शिरा में वास करे लें . हमनीं के संकल्प-भावना क मूर्तिमंत रूप. जब अन्याय होखे  त ओसे संघर्ष क आरेखन  विजयादशमी  में मिलला. सामान्य के इकठ्ठा कsके संघर्ष कइला क कला राम के लग्गे हवे. सत्ता से दूर रहिके मैत्री-कला केहू उनसे सीखे. मैत्री क निर्वाह कइलो ऊ  जानेलन . ऊ लंका पर राज ना करेलन . ऊ विस्तारवादी नीति के नियामक ना.  रावन एगो अइसन प्रतिनायक ह , जवन विद्वान्  हवे आ प्रकृति के वश में रखेला. रावन से सीखे खातिर लछुमन रावन के मृत्यु के घरी में सादर उनका लग्गे जालें. रावन विराट शक्ति आ प्रतिभा क धनी रहे. ओकर शक्ति आ प्रतिभा जदि स्त्री के हरला में ना खपत आ मन-विस्तार होत त साइत राम-रावन संघर्ष  क दिशा कुछ अ लउरू होत. ‘रह गयल राम-रावन क अपराजेय समर’. कब्बों ख़त्म ना होला हमनीं के भित्तर क संघर्ष – प्रकाश आ अन्धकार क.  जइसे अन्हियारो में विशिष्ट क्षमता होली सन ओइसहीं  रवनवो में बेहतरी कई बार देखल जा सकल जाला. भारतीय मन केहू में खाली नकारात्मकते ना देखेला , ऊ सकारो खोजला. चाहे कहीं – खोज लेला. शम्बूक आ सीता- निष्कासन के प्रसंगो के लोक अपना समझ से देखेला .

महत्व जदि सत्ता, संपत्ति , कृत्रिम लोकप्रियता , धाक आदि के सहारे प्राप्त भइल त ओकरे कम हो गइले क संभावना अधिका होले . जदि अच्छाई  एकरे विधायक  गुण -संपत्ति से बनल आ बुनल होखे त ओम्में धुंधलापन अइला के अधिक आशंका ना होला.  राम  क  जवन अर्जित हवे , ओके विधायक सृजनशीलता कहल जा सकल जाला

आधुनिकतावाद औद्योगिक विकास , बुद्धिवाद  आ विज्ञान  के वर्चस्व  के प्रगति आ सभ्यता के साथ जोड़ दिहल गइल रहे, जबकि उत्तर आधुनिकतावाद संस्कृति के एक के बजाय अनेक आ केंद्रित के बजाय विकेन्द्रित करार दिहलस . अब्बे  देखीं त नया सिरा से अब संस्कृति डिस्कोर्स क मुद्दा  बनल  रहल हवे  , जेम्में  जरिन क तलाश , अतीत आ परम्परा के नया अवगाहन महत्त्वपूर्ण बनत गयल हवें .

राम के नया सिरे से आविष्कृत कइला खातिर उनहूं के गहराई से समझे के होखी जवन ‘ अन्य ‘ के रूप में रहल हवें आ कई बेर साहित्य आ इतिहास से बहरे मानल जात रहल हवें , जइसे- दस्यु, राक्षस आ आदिजन . येह सबाल्टर्न क समीचीन व्याख्या आवश्यक होखी . सीता, उर्मिला , मांडवी आदि के भी नया सिरे से देखे के होखी . येह पढ़ले  क प्रक्रिया के गायत्री स्पीवॉक
चक्रवर्ती ‘ ट्रैन्जेक्टिव  रीडिंग ” कहेली .  एह तरह नये अर्थन आ सन्दर्भन क दुनिया के दुवार खुलेलन .

एतनी सगरो  अर्थच्छवियन , दृष्टियन क  संकुलता  आ बहुवचनात्मकता से  संपृक्त कथा हज़ारन साल से लोक व्यवहार , आचार आ स्मृति  में  रंगमयी झिलमिलाहट से भारतीय समाज के रचत रहल हवे… अइसन निरंतरता , जवन जीवन क उत्सव बन जाय …. भारतीय बिम्ब सदा मंद्र  आ तारसप्तक के बीच होला. उहां अतिवाद के स्थान ना. एही खातिर प्रतिपदा से दशमी खातिर अइसन सुऋतु चयनित हवे, जहां  ना शीत हवे ना गर्मी . जहवाँ स्वच्छता पर बल हवे : अंतः आ बाह्य परिमार्जन. एक ना , ई कथा सैकड़न रूपन में हवे. खाली एगो पाठ ना, सैकड़न पाठ. एगो पाठ राम क त अन्य पाठ सीता क. एगो पाठ लछुमन क त अन्य पाठ उर्मिला क. राम ,लछुमन – भरत के अन्तर्सम्बन्ध एगो भिन्न कोटि क पाठ बनावलन .  रामायन, रामचरितमानस, अध्यात्म रामायण, साकेत, रामचंद्रिका , आनंद रामायण, बौद्ध रामायण आदि. ओम्में अलग-अलग दृष्टि. दृष्टियन क बहुलता वाली अइसन विजयादशमी  क विजय-पाठ अंततः जदि सामान्य अदिमी क प्रेरक स्मृति  क सुगंध से ना जुड़ल होत त ऊ  अर्थमय ना होत आ हमनीं के भित्तर -बहरे के चौक-चौबार  में मेला न  बन जात . एगो अइसन मेला , जहां हमनीं के स्वयं से मिलल जाला

लोको से . नायक से मिलल जाला, प्रतिनायको से . समय से मिलल जाला , भविष्यो से . काव्य से मिलल जाला, महाकाव्यो से . अंत से मिलल जाला , अनंतो से . भाषा से मिलल जाला , भाषा से परहूं . हद से मिलल जाला , बेहद से भी।

परिचय दास
नई दिल्ली
मोबाइल -9968269237

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