रंग जिनगी के

रंग जिनगी के

परिचय दास

रंग के खेल अइसन ह
कि जब ले जिनगी बा
तब ले चलेला
कोई लाले-लाले चमकेला
कोई पीयर चननिया नियर सनेस देला
कोई हरियर-हरियर ओस नियर
भीतर-भीतर जुड़ाए जाला।

कबो-कबो जिनगी के कपड़ा पर
कवनो अनजोर रंग लाग जाला
जवन लाख धोवला पर भी छूटे के नाम ना लेला
कबो-कबो कवनो अबीर
एगो झोंका में उड़ जाला
जइसे कुछ भइलो ना होखे।

रंग सबके लागेला—
दुआर पर बैठल बूढ़ पुरनिया के
आँगन में कूदल झमकली के
रोज के कमाए खाए वाला मजदूर के
चौबटिया पर बइठल बटोहिया के।

कोई आपन रंग देके खुशी से झूमेंला
कोई चुपचाप भींजेला—
ना जाने ई सरसों फूले के रंग ह
कि भितरे के कवनो घाव के दाग!

रंग अइसन नटखट ह
कि बिना पूछले घुस जाला भीतर
मन के कोरा में
याद के कोठरी में।

होली के दिन सब रंगीन होला
बाकिर असली खेल त ओह दिन होला
जब लोग बिना रंग के
एक-दूसरा से बेरंग भेंट करेला।

कुछ रंग
हथेली पर रह जाला
कुछ रंग
कपड़ा पर चिह्न छोड़ जाला
बाकिर कुछ रंग
भीतर अइसन समा जाला
कि सब गंगो-जमुनो धो ना पावे।

कबो-कबो जिनगी के
एतना पक्का रंग चढ़ जाला
कि आदमी के बोल
ओकर हँसी, ओकर चाल
सबके रंगीन बना देला।

कुछ लोग
रंग दिहला के बहाने
अपना अंदर के भेद छुपा लेला
तो कुछ लोग
चुपचाप आपन बेरंग जिनगी में
होली खोजेला।

एही भीड़ में कवनो
लाल-नील आँख से झाँकेला
कवनो पीयर हँसी हौले से बिखरेला
कवनो हरा सपना
चुपचाप पलक के कोर में लुकाई लेला।

रंगवा के खेल अइसन ह
कि केहू के चेहरा चमका जाला
केहू के भीतर स्याह रात घुल जाला।
रंग जवन बा
उहे जिनगी के असली आइना ह।

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