नव नालंदा महाविहार में हिन्दी पखवाड़ा के समापन आ पुरस्कार- वितरन समारोह संपन्न भइल
नव नालंदा महाविहार में हिन्दी पखवाड़ा के समापन आ पुरस्कार- वितरन समारोह संपन्न भइल

संस्कृति के पावन धरती नालंदा में नव नालंदा महाविहार द्वारा आयोजित हिन्दी पखवाड़ा के समापन आ पुरस्कार-वितरण समारोह एगो एहन उत्सव बन गइल, जे भाषा, संस्कृति आ अकादमिक चेतना के एक संग जोड़ि देलस। प्राचीन गौरवशाली परंपरा आ आधुनिक अकादमिक गत्यात्मकता के संगम के ई पल पूरा परिसरत लेल अविस्मरणीय बन गइल।
मंगल पाठ से शुरुआत
कार्यक्रम के शुभारंभ बहुत श्रद्धा भरल माहौल में भइल। सभसे पहिले पालि भाषा में डॉ. धम्म ज्योति मंगल पाठ सुनवनी। उनकर आवाज़ में उ गंभीरता रहे जे नालंदा के बौद्धिक आ धार्मिक परंपरा के जीवंत बना रहल रहे। ओकरा बाद संस्कृत में डॉ. नरेंद्र दत्त तिवारी मंगल पाठ प्रस्तुत कइले। संस्कृत के शुद्ध ध्वनि आ लय समारोह के अउरी पवित्र बना देले। दुनो भाषा के ई संगम मानो भारत के सांस्कृतिक विविधता आ भाषाई समृद्धि के प्रत्यक्ष रूप रहल।
प्रो _. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ के वक्तव्य_
एहिजा हिन्दी विभाग के प्रोफेसर आ राजभाषा संयोजक प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ पखवाड़ा के गतिविधियन के विस्तृत चर्चा कइलन। ऊ भाषा के सामाजिक उपयोगिता, साहित्यिक शक्ति आ अकादमिक संभावना पर प्रकाश डाललन। पखवाड़ा के दौरान कविता प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, निबंध लेखन प्रतियोगिता, टंकण प्रतियोगिता आ अनुवाद प्रतियोगिता भइल, जेमे गैर शैक्षणिक संवर्ग आ शोध छात्र-छात्रा दुनो सक्रिय हिस्सा लिहलन। परिचय दास जी विद्यार्थी लोग से अपील कइलन कि हिंदी के रोजमर्रा के काम में बढ़ावल जाय, रोज लिखल जाय आ रचनात्मकता से जुड़ल जाय। ऊ कहलन—हिन्दी गल्प-भाषा हवे, बाकिर ओकरे संगे सम्प्रेषण के उत्कृष्ट प्रतीक हवे।
प्रो . _विश्वजीत कुमार के संबोधन
एहिजा प्रो. विश्वजीत कुमार, संकायाध्यक्ष (पाली आ अन्य भाषा) अपन विचार रखलन। ऊ कहलन कि भाषा के अर्थ खाली संचार माध्यमे नइखे, ई हमारी सांस्कृतिक स्मृति आ दार्शनिक धरोहर के वाहक ह। ऊ हिंदी आ अन्य भारतीय भाषन के आपसी संबंध पर चर्चा कइलन आ स्पष्ट कइलन कि एक-दूसरा भाषा के अध्ययन आ सम्मान करे से भारतीय बहुलता के असली पहचान मिलेला।
डॉ _. के. के. पांडेय के कविता-पाठ
समारोह के साहित्यिक आकर्षण रहल डॉ. के. के. पांडेय के कविता-पाठ। ऊ हिंदी केंद्रित कविता में आधुनिक जीवन के जटिलता आ मानवीय संवेदना के कोमल अभिव्यक्ति कइलन।
पुरस्कार वितरण
समारोह के सबले प्रतीक्षित पल रहल—पुरस्कार वितरण। नव नालंदा महाविहार के माननीय कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह हिंदी पखवाड़ा के अलग-अलग प्रतियोगिता के विजेतन के पुरस्कार प्रदान कइलन। प्रो. विश्वजीत कुमार, प्रो. रूबी कुमारी आ प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ओह काम में सहयोग कइलन। विद्यार्थी लोग के चेहरा पर गर्व आ उत्साह साफ झलकत रहे। पुरस्कृतन के नाम वाचन हिंदी प्राध्यापक श्री विकास सिंह कइलन।
माननीय कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह के अध्यक्षीय वक्तव्य_
पुरस्कार वितरण के बाद कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह गंभीर आ विस्तृत संबोधन कइलन। ऊ कहलन—
“हिन्दी खाली भाषा नइखे, ई हमारी सांस्कृतिक चेतना आ राष्ट्रीय अस्मिता के आत्मा हवे। मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा के सक्रिय स्थान ना दिहल गइल, त अकादमिक साधना अधूरी रह जाई। हिंदी परंपरा आ आधुनिकता, गाँव आ शहर, भारत आ दुनिया के बीच संवाद के सेतु हवे।”
ऊ आगू कहलन— “आज जरूरत बा कि हिंदी के खाली अध्ययन विषय मत मानल जाय, बल्कि जीवन के अभिव्यक्ति के माध्यम बनावल जाय। राहुल सांकृत्यायन के ‘बुद्धचर्या’ ओह से महान बनल कि ऊ साधारण भाषा में लिखल गइल। गीतांजलि श्री के ‘रेत समाधि’ अनुवाद से बुकर सम्मान पाइली। एह से स्पष्ट बा कि भाषा के सहजता आ सम्प्रेषणीयता से ओकरा वैश्विक पहचान मिलेले।”
कुलपति महोदय विद्यार्थियन के प्रेरित कइलन कि हिंदी के करियर आ शोध से जोड़ल जाय। विश्वविद्यालयन के जिम्मेदारी बा कि भाषा आ संस्कृति के अकादमिक दायरा से निकालके समाज आ जनमानस तक पहुँचावल जाय।
_धन्यवाद-ज्ञापन आ राष्ट्रगान_
अंत में प्रो. रूबी कुमारी (कुलसचिव) सुरुचिपूर्ण धन्यवाद-ज्ञापन कइलन। सभ प्रतिभागी, निर्णायक, आयोजक आ उपस्थित सभके प्रति आभार जतवलन।
सभागार में राष्ट्रगान के गूँज कार्यक्रम के एकता आ राष्ट्रभावना से भर देलस।
नव नालंदा महाविहार के ई आयोजन खाली हिंदी पखवाड़ा के समापन नइखे, ई एगो सांस्कृतिक उद्घोष बा कि भाषा आ साहित्य हमारी पहचान के अभिन्न अंग हउवें। हिंदी के परंपरा, ओकर वर्तमान आ ओकर भविष्य के संभावना—सब कुछ एह समारोह में एक साथ अनुभव कइल गइल।




