सोनाके हिरण पर जब सीता के मन

सोनाके हिरण पर जब सीता के मन होइ।

तब तब हि सीताके घर घर से हरण होई। ।

अपना सुन्दरता पर औरत जब अगराइ हन।

तब तब हि औरत समाजमे नाक कटवइ हन ।।

नारीके समझके अकेल रावान जब तडपाई।

तब तब हि रामके हात से शक्तिशाली रावन मारल जाई।।

सोना के हिरण पर जब सीता के मन होइ।

तब तब हि सीताके घर घर से हरण होइ। ।

पापमे परके जब कवनो रावन भाई के ठुकराई।

मजबुर भभिषण तब रघुवीरके शरण जाई।।

वेद आज्ञा धर्मराज भुलाके जब खेलि केहु जुवा।

तब कवनो काम नालागी ऋषिमुनी के दुवा।।

कवनो भी सभामे औरत के अपमान अगर होइ।

दुषाशन जस लहुत्ती करके भगवानसे मरण होइ।।

धन रुपी जवनी पर कवनो नरेशके घमण्ड होई ।

कवो उठल भि होइ मुस्किल जब बुढापा उमर होइ।।

सोना के हिरण पर जब सीता के मन होइ।

तब तब हि सीताके घर घर से हरण होइ।।

विरेन्द्र साह कानु

कालिकामाई गाउँपालिका -२ पर्सा

 

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