शुभ दिपावली के खातिर रौतहट मे माटीके दियरी के माग बढल

शुभ दिपावली के खातिर रौतहट मे माटीके दियरी के माग बढल

मेवालाल यादव

रौतहट २१ कातिक

नेपालीलोग के दुसरका बडका पर्व ह शुभ दिपावली । दिपावली के प्रमुख विशेषता मेसे एक ह दिपावली अर्थात् झिलिमिली बत्ती बारेवाला पिछिलका कुछ दशक एने विद्युतीय बत्ती के प्रयोग बढला पर भी माटी के दिया बारेके परम्परागत प्रचलन भी ओतने प्रयोग मे बा ।

दिपावली बजार मे पाला के माग भी ओतने बढल बा । माटी के बरतन के माग बढला सँगे रौतहट के कुम्हार समुदाय के ई समय माटी के बरतन बनावेके, सुखावेके आ पकाके तइयार करके बजार पठावेमे लागल बाडन । दिपावली के समय मे माग पुरा करे खातिर रौतहट के अनेकन जगहा मे धमाधम दियरी, चौमुख लगायत के बरतन बनावल जा रहल बा ।

कुम्हार समुदाय माटी के आउर बरतन बनावल छोडके अभी दियरी आ चौमुख बनावेमे व्यस्त बाडन । “दिपावली मे आउर बरतन ओतना बिक्री भी ना होखेला, ओहिसे अभी आउरर बरतन बनावल छोडके पाला बनावत आईल बानीँ”, रौतहट के पोटरी स्क्वायर मे पाला सुकावेमे व्यस्त राजकुमार प्रजापति कहनी, “चाडपर्व मुताविक भी बरतन बनावेके पडि, दशहरा मे धुपौरो, दियरी, चौमुख के माग बढल जईसन दिपावली मे पाला के माग बेसी आवेला ।”

दिपावली मे लक्ष्मी पूजा के खातिर बाहरी जिल्ला से भी दियरी के माग आवेवाला भईला से गमला, धुपदानी, दियरी, खुत्रुके लगायत अनेकन पर्यटकीय सामान बनावेके काम के यथावत राखके पाला बनावेके काम मे व्यस्त भईल राजकुमार बतवनी ।

“सबेरे उठके पहिले बनावल माटी के आउर तईयार करके पाला बनावेके, सुखावेके तथा सुखल सामान राखके भट्टी मे पकावेके आ माग मुताविक बजार पठावेके काम मे हि व्यस्त बानी, अभी आउर बरतन बनावेके फुर्सद नईखे”, उ कहनी ।

आजकल प्रविधि से माटी के बरतन बनावेके पेसा भी सहज बनत गईल बा । मेसिन से हि तईयार करके माटी के विद्युतीय चक्र मे राखके काँच माटी तइयार कईल जाला । माटी तईयार कईला के बाद दियरी, ढाकना, चौमुख लगायत माटी के बरतन बनाके घाम मे सुखावल जाला । सुखके तइयार भईल सामान आधुनिक भट्टी मे सुखाके तइयार होला आ माग मुताविक बजार मे आपूर्ति कईल जाला ।

खास करके धन के देवी लक्ष्मी के पूजा करेवाला पर्व भईला से दिपावली मे फलफूल, सयपत्री फूल सँगे झिलिमिली बत्ती बालल जाला । धनकी देवी लक्ष्मी के घर मे लियावे खातिर दिपावली मे झिलिमिली बत्ती बारेके परम्परा रहल बा । दिपावली के लक्ष्मी पूजा के दिन दिपावली करे खातिर घर के दुवारी, झ्याल, आँगन, बरण्डा लगायत के जगहा मे माटी के दियरी बारके झिलिमिली करेके परम्परा रहल बा ।

बितल समय दिपावली मे माटी के दिया के बदले विद्युतीय बत्ती के प्रयोग बढे लागल बा । दिपावली मे बिजुली के रङ्गीचङ्गी बत्ती बारके झिलिमिली बनईला पर भी अनिर्वाय रुप मे दिया भी बारेके परम्परा भईला से दिपावली मे हरेक बरीस माटी के दिया के भी माग बढल व्यवसायी बतावेलन । कुछ बरीस पहिले मैनबत्ती बारेके प्रचलन भी देखल गईल माकिर दिया जईसन सुरक्षित ना भईला के बाद मैनबत्ती धिरे धिरे विस्थापित होत गईल बा ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

Close
Back to top button
error: यो समाग्री सुरक्षित छ ।