कार्तिक शुक्ल चतुर्थी : छठ के मुख्य व्रतविधि सुरु
अजय चौरसिया /
वीरगंज २० कातिक, हरेक बरीस कातिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी के दिन तक मनावल जाएवाला छठ के व्रतविधि मंगर से सुरु भईल बा । चतुर्थी के दिन आजु सबेरे बर्तालु स्नान करके एक छाक खाके ब्रत सुरु कईले बाडन । एकरा के ‘नहाय खाय’ कहल जाला ।
छठ के विधि कातिक कृष्ण प्रतिपदा अर्थात् कोजाग्रत पूर्णिमा के दिन से सुरु भईला पर भी मुख्य व्रतविधि मंगर से सुरु भईल बा । छठ व्रत विधि के दुसरका दिन अर्थात् कातिक शुक्ल पञ्चमी के दिन बुध के सखर डाल के बनावल खीर (खरना) षष्ठी माता के चढाके बर्तालु प्रसादस्वरुप खाएके आ नुन ना खाके एक छाक फलाहार कईल जाला । एकरा के रसियावरोटी (खरना) कहल जाला ।
ई पर्व के मुख्य दिन कातिक शुक्ल षष्ठी के दिन कठोर निराहार व्रत करके सँझिया डुब रहल सूर्य के पूजा आराधना करके अघ्र्य देवेके विधि विधान रहल छतैनीनलोग बतावेनी । ई बरीस कातिक २२ गते बियफे के दिन छठ के मुख्य दिन ह । ई दिन डुब रहल सूर्य के अघ्र्य देहल जाला ।
“षष्ठी के दिन रातभर जागरम करके कातिक शुक्ल सप्तमी के दिन सबेरे उग रहल सूर्य के पूजा आराधना करके विधिपूर्वक अघ्र्य देहला के बाद ई पर्व समापन होखेला ।” ई बरीस कातिक २३ गते शुक के दिने कातिक शुक्ल सप्तमी के दिन सबेरे उग रहल सूर्य के पूजा आराधना करके अघ्र्य देहला के बाद छठ पर्व समापन होखेला ।
कार्तिक शुक्ल पक्ष मे विधिपूर्वक सूर्य के पूजा आराधना करके अघ्र्य देहला मे चर्म अर्थात् छाला रोग ना लागी कहके धार्मिक विश्वास बा । विसं २०४६ से पहिले तराई के सीमित क्षेत्र मे मनावल जाएवाला छठ अभी राष्ट्रिय स्वरुप ग्रहण कईले बा । सरकार ई पर्व के अवसर मे सार्वजनिक छुटी देत आईल बा । सूर्य के पूजा, आराधना आ उपासना से जुडल ई पर्व तराई सँगे पहाडी जिल्ला मे भी मनावल सुरु भईल बा ।
छठ पर्व के खातिर राजधानी के गुह्येश्वरी से गौरीघाट क्षेत्र, गहनापोखरी, नागपोखरी, कमलपोखरी लगायत वागमती, नख्खु आ विष्णुमती लगायत नदी किनार मे सजावट कईल बा । छठ के बर्तालु कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुद्ध खानपान करके शुद्ध होके रहेलन । कुछ बर्तालु कोजाग्रत पूर्णिमा के बिहान भईला अर्थात् कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से हि लसुन, प्याजलगायत तामसी खाद्यपदार्थ ना खाके शुद्ध अर्थात् सात्विक भोजन करके रहेलन ।